संस्कृत भाषा की 50 महत्वपूर्ण सूक्तियां
यहाँ संस्कृत भाषा में 50 महत्वपूर्ण सूक्तियां दी जा रही हैं, जो नैतिकता, जीवन-मूल्य, ज्ञान और धर्म से संबंधित हैं:
1. सर्वे भवन्तु सुखिनः।
सभी सुखी हों।
2. सत्यं वद, धर्मं चर।
सत्य बोलो, धर्म का आचरण करो।
3. अहिंसा परमो धर्मः।
अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है।
4. धर्मो रक्षति रक्षितः।
धर्म की रक्षा करने वाला स्वयं धर्म से रक्षित होता है।
5. विद्या ददाति विनयं।
विद्या विनम्रता देती है।
6. कर्मण्येवाधिकारस्ते, मा फलेषु कदाचन।
तुम्हारा अधिकार केवल कर्म पर है, फल पर नहीं।
7. वसुधैव कुटुम्बकम्।
संपूर्ण विश्व एक परिवार है।
8. असतो मा सद्गमय।
असत्य से सत्य की ओर ले चलो।
9. न चोरहार्यं न च राजहार्यं।
जिसे न चोर चुरा सकता है और न राजा हरण कर सकता है, वह विद्या है।
10. योगः कर्मसु कौशलम्।
योग का अर्थ है कर्म में कुशलता।
11. धैर्यं सर्वत्र साधनम्।
धैर्य हर स्थिति में लाभकारी है।
12. सत्यमेव जयते।
सत्य की ही विजय होती है।
13. उद्यमेन हि सिद्ध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।
कार्य उद्यम से सफल होते हैं, केवल इच्छाओं से नहीं।
14. शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्।
शरीर धर्म का पहला साधन है।
15. यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवताः।
जहाँ नारियों की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते हैं।
16. विद्या विनयेन शोभते।
विद्या विनम्रता से शोभा पाती है।
17. कृण्वन्तो विश्वमार्यम्।
हम विश्व को श्रेष्ठ बनाएंगे।
18. प्राप्नुवन्ति सर्वे सुखिनः।
सभी सुखी हों और समृद्धि प्राप्त करें।
19. न हिंसा न हिंसा न हिंसा।
हिंसा मत करो, हिंसा सबसे बड़ा पाप है।
20. धनं नष्टं किञ्चिद् नष्टं।
धन नष्ट हो जाए तो कुछ भी नष्ट नहीं होता, पर चरित्र नष्ट हो जाए तो सब कुछ नष्ट हो जाता है।
21. क्षमा वीरस्य भूषणम्।
क्षमा वीरों का आभूषण है।
22. उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्।
आत्मा से आत्मा का उद्धार करो, उसे गिरने मत दो।
23. समदु:खसुखं धीरं सोऽमृतत्वाय कल्पते।
जो सुख-दुःख में समान रहता है, वह अमृतत्व को प्राप्त होता है।
24. परोपकाराय सतां विभूतयः।
सज्जन पुरुषों की संपत्ति परोपकार के लिए होती है।
25. नास्ति सत्यसमं तपः।
सत्य के समान कोई तपस्या नहीं है।
26. विद्या सर्वोत्तम धन है।
27. धन्योऽस्म्यहं तु भवता कृतेति।
मैं धन्य हूँ, क्योंकि आपने मेरा कल्याण किया।
28. क्षमेव परमो धर्मः।
क्षमा सबसे बड़ा धर्म है।
29. वाणी गुणानां संस्कारः।
वाणी का शोधन गुणों का संस्कार है।
30. आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्।
जो अपने लिए प्रतिकूल है, उसे दूसरों के लिए मत करो।
31. धर्ममेव हतो हन्ति।
जो धर्म का नाश करता है, वह स्वयं नष्ट हो जाता है।
32. महाजनो येन गतः स पन्थाः।
महान लोग जिस मार्ग पर चलते हैं, वही पथ श्रेष्ठ है।
33. धर्मेण हीना: पशुभिः समानाः।
जो धर्म से हीन है, वह पशुओं के समान है।
34. नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य न चायुक्तस्य भावना।
जिसका मन संयमित नहीं है, उसकी बुद्धि और भावना नहीं होती।
35. विद्वान्सर्वत्र पूज्यते।
विद्वान व्यक्ति हर जगह सम्मानित होता है।
36. शमः कश्चन पार्थस्य शत्रुः।
शांति ही व्यक्ति की सबसे बड़ी मित्र है।
37. शान्ति: शान्ति: शान्तिः।
शांति, शांति, शांति।
38. परोपकाराय सतां विभूतयः।
सज्जनों की विभूतियाँ परोपकार के लिए होती हैं।
39. धैर्यं सर्वत्र साधनम्।
धैर्य हर परिस्थिति में साधन है।
40. सत्यं शिवं सुन्दरम्।
सत्य ही कल्याणकारी और सुंदर है।
41. सर्वधर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
सभी धर्मों को त्याग कर मेरी शरण में आओ।
42. काले काले नियोजयेत्।
कार्य समय पर करना चाहिए।
43. न चोरहार्यं न च राजहार्यं।
विद्या को न चोर चुरा सकता है, न राजा हरण कर सकता है।
44. संगठन शक्ति कल्याणकारी होती है।
45. श्रीरस्तो मेऽस्तु कुर्वन्तु मङ्गलम्।
श्री मुझ पर बनी रहे और सब कल्याणकारी हो।
46. सर्वारम्भा हि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृताः।
हर आरंभ में दोष होता है, जैसे धुएं से अग्नि ढकी होती है।
47. न मेघः क्षिपति वज्रं, न तद्विद्वेषं च।
बादल वज्रपात नहीं करता, उसका उद्देश्य केवल जल देना है।
48. सत्यमेव जयते।
सत्य की ही विजय होती है।
49. धर्मेण हीना: पशुभिः समानाः।
धर्म से रहित मनुष्य पशु के समान होता है।
50. न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते।
यहाँ ज्ञान के समान कुछ भी पवित्र नहीं है।