श्रीमद्भगवद्गीता के सभी अध्यायों का क्रम, नाम, श्लोकों की संख्या और विवरण

श्रीमद्भगवद्गीता के सभी अध्यायों का क्रम, नाम, श्लोकों की संख्या और विवरण

श्रीमद्भगवद्गीता, भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए उपदेशों का संग्रह है। यह महाभारत के भीष्मपर्व का भाग है। इसमें 18 अध्याय हैं, और प्रत्येक अध्याय एक विशिष्ट योग (आध्यात्मिक मार्ग) को समझाता है।


1. अर्जुन विषाद योग (47 श्लोक)

  • विवरण: इस अध्याय में अर्जुन का मानसिक संघर्ष और युद्ध के प्रति उसका मोह दिखाई देता है। वह युद्ध करने से पहले अपने कर्तव्य पर संशय करता है।

2. सांख्य योग (72 श्लोक)

  • विवरण: श्रीकृष्ण अर्जुन को आत्मा का ज्ञान, जीवन-मृत्यु का रहस्य और निष्काम कर्मयोग का उपदेश देते हैं।

3. कर्म योग (43 श्लोक)

  • विवरण: इसमें कर्म के महत्व और उसे बिना फल की आशा के करने की प्रक्रिया समझाई गई है।

4. ज्ञान कर्म संन्यास योग (42 श्लोक)

  • विवरण: ज्ञान, कर्म और संन्यास के बीच संतुलन और यज्ञ के महत्व पर चर्चा की गई है।

5. कर्म संन्यास योग (29 श्लोक)

  • विवरण: इस अध्याय में संन्यास (त्याग) और कर्मयोग की तुलना की गई है, और कर्मयोग को श्रेष्ठ बताया गया है।

6. ध्यान योग (47 श्लोक)

  • विवरण: आत्मसंयम और ध्यान (मेडिटेशन) के महत्व को समझाया गया है।

7. ज्ञान विज्ञान योग (30 श्लोक)

  • विवरण: भगवान के तत्वज्ञान और उनकी भक्ति का महत्व बताया गया है।

8. अक्षर ब्रह्म योग (28 श्लोक)

  • विवरण: मृत्यु के समय भगवान का ध्यान कैसे करें और अक्षर ब्रह्म (परमात्मा) का महत्व।

9. राज विद्या राज गुह्य योग (34 श्लोक)

  • विवरण: गुप्त ज्ञान और भगवान की महिमा का वर्णन। भक्ति योग का महत्व बताया गया है।

10. विभूति योग (42 श्लोक)

  • विवरण: भगवान श्रीकृष्ण अपनी दिव्य विभूतियों (शक्तियों) का वर्णन करते हैं।

11. विश्वरूप दर्शन योग (55 श्लोक)

  • विवरण: भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को अपना विराट स्वरूप दिखाते हैं।

12. भक्ति योग (20 श्लोक)

  • विवरण: भक्ति का महत्व और भगवान को प्रसन्न करने का सरल मार्ग।

13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग (35 श्लोक)

  • विवरण: क्षेत्र (शरीर) और क्षेत्रज्ञ (आत्मा) के भेद का ज्ञान।

14. गुण त्रय विभाग योग (27 श्लोक)

  • विवरण: सत्व, रजस और तमस – इन तीन गुणों के प्रभाव और उनसे ऊपर उठने का उपाय।

15. पुरुषोत्तम योग (20 श्लोक)

  • विवरण: भगवान श्रीकृष्ण को पुरुषोत्तम (श्रेष्ठ पुरुष) के रूप में वर्णित किया गया है।

16. दैवासुर संपद विभाग योग (24 श्लोक)

  • विवरण: दैवी (सात्विक) और आसुरी (तमसिक) स्वभाव के लक्षणों की तुलना।

17. श्रद्धा त्रय विभाग योग (28 श्लोक)

  • विवरण: श्रद्धा के तीन प्रकार – सात्विक, राजसिक और तामसिक।

18. मोक्ष संन्यास योग (78 श्लोक)

  • विवरण: गीता का सार। संन्यास, त्याग, मोक्ष, और भगवान में शरण लेने का महत्व।

श्रीमद्भगवद्गीता का सार:

  • कुल अध्याय: 18
  • कुल श्लोक: 700
  • मुख्य विषय: कर्मयोग, ज्ञानयोग और भक्ति योग।

गीता हमें जीवन के कठिन संघर्षों से ऊपर उठकर धर्म और कर्तव्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है।

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